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Wednesday, November 8, 2017

चाबहार के रास्ते

पिछले २९ अक्टूबर को गुजरात के कांडला बंदरगाह से अफ़गानिस्तान के लिए भारत ने गेहूँ  की एक खेप ईरान के चाबहार बंदरगाह को भेजा है जो वायदे के मुताबिक लदान की छह किश्तों में पहली है. चाबहार बंदरगाह ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रान्त के दक्षिण में स्थित बेहद ही अहम बंदरगाह है. गेहूँ की यह किस्त यहाँ से सड़क मार्ग से इस प्रान्त की राजधानी ज़ाहेदान से होते हुए सीमावर्ती अफ़गानिस्तान के निमरुज प्रान्त की राजधानी ज़रांज तक पहुँचाई जायेगी. लगभग ९०० किमी की दूरी के इस सड़क मार्ग का अधिकांश हिस्सा ईरान में पड़ता है और इसे वायदे के मुताबिक ईरान ने ही विकसित किया है. ज़रांज से गेहूँ की यह किस्त अफ़गानिस्तान के प्रमुख शहर डेलाराम पहुँचाई जायेगी. डेलाराम से काबुल और अफ़गानिस्तान के बाकी प्रमुख शहर सीधे जुड़े हैं. रूट नंबर ६०६ के नाम से प्रसिद्घ ज़रांज से डेलाराम की २१८ किमी की लम्बी सड़क भारत ने आतंकी साये में बड़ी मुश्किलों से बनाई है. गुजरात के कांडला बंदरगाह से अफ़गानिस्तान के डेलाराम की यात्रा जो कि भारत के अनथक प्रयासों की यात्रा भी है; इतनी आसान नहीं रही है, पर यह बेहद संतोषप्रद है कि आखिरकार भारत इसमें कामयाब रहा. यह भी उत्साहवर्द्धक है कि भारत ने चाबहार से ज़ाहेदान तक रेलमार्ग बिछाने के लिए जापान की आर्थिक आश्वस्ति भी पायी है जिससे इस मार्ग पर सुगम संचालन में गति आयेगी.
भारत की भू-राजनैतिक स्थिति बेहद ही विशिष्ट है और लार्ड कर्जन के जमाने से ही इसकी स्वीकार्यता स्पष्ट है. भारत ‘महान एशियाई वृत्त-चाप के केंद्र’ में स्थित है, जहाँ से समूचे एशिया की राजनीति को संचालित और प्रभावित किया जा सकता है. विश्व शक्ति अमेरिका भी यह सत्य स्वीकारता है और अभी राष्ट्रपति ट्रंप जो एशिया-पैसिफिक की यात्रा पर निकले हैं, जापान में अपने बयान में उन्होंने कहा है कि क्षेत्र को ‘एशिया-पैसिफिक’ कहने के बजाय ‘इंडिया-पैसिफिक क्षेत्र’ कहा जाना चाहिए. अमेरिका के साथ मिलकर हिन्द महासागर में तो भारत सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से लाभप्रद स्थिति में है किन्तु भुमिबद्ध मध्य एशिया और मध्य-पूर्व एशिया से भारत का संपर्क चीन और पाकिस्तान की घेरेबंदी के कारण प्रायः अवरुद्ध ही रहा है. मध्य एशिया जो कि अपने खनिजों और ऊर्जा स्रोतों के लिए महत्वपूर्ण है; में रूस और चीन की उपस्थिति प्रमुखता से महसूस की जाती है परन्तु भारत की उपस्थिति नगण्य रही है. मध्य एशिया तक पहुँच रूस होते हुए यूरोप तक पहुँचने का वैकल्पिक मार्ग भी देती है, किन्तु पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और फिर चीन के अक्साई चिन पर कब्ज़ा कर लेने के बाद भारत का सम्पूर्ण मध्य एशिया से भौतिक संपर्क कट जाता है. यह भारत के लिए गंभीर सामरिक-सांस्कृतिक-व्यापारिक हानि की स्थिति रही है. भारत की ‘कनेक्ट सेन्ट्रल एशिया नीति’ इसी स्थिति के जवाब की नीति है. चीन की ‘मेखला और मार्ग पहल ’ नीति के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की प्रगति काफी अच्छी है और बेहद ही महत्वाकांक्षी रीति से चीन ने पाकिस्तान का ग्वादार बंदरगाह भी विकसित किया है. ग्वादार बंदरगाह चीन को मध्य-पूर्व एशिया में प्रवेश की सुविधा तो देता ही है, यह चीन के अशांत क्षेत्र झिनजियांग के काशगर क्षेत्र में आर्थिक मौक़ों के अवसर भी खोलता है. अफ़गानिस्तान अपनी आर्थिक ज़रूरतों के लिए हाल-फिलहाल इसी ग्वादार बंदरगाह पर निर्भर है जो कि उसके लिए भी पाकिस्तान से उसके तनावपूर्ण संबंधों के चलते एक अवांछनीय स्थिति है. ग्वादार बंदरगाह पर बढ़ती हलचलें भारत के लिए शुभ नहीं कहीं जा सकतीं क्योंकि चीन यहाँ अपना सागरीय सामरिक संचालन केंद्र भी विकसित कर रहा. भारत ने एक मौका गंवाया था जब उसे ओमान की तरफ से ग्वादार बंदरगाह विकसित करने का न्यौता मिला था और यह बंदरगाह तब ओमान के नियंत्रण में था. शायद तब इस बंदरगाह की सामरिक महत्ता नहीं समझी गयी अथवा विकल्पों का पक्षपात किसी दूसरी ओर रहा हो.


भारत जिसे दक्षिण एशिया में चीन के सापेक्ष अमेरिका का निर्णायक समर्थन हासिल है. श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह में चीन के भारी निवेश और इसके पूर्ण परिचालन का अधिकार चीन द्वारा हस्तगत कर लेने के पश्चात् निश्चित ही हिन्द महासागर में यह भारत की स्थिति को रणनीतिक रूप से चुनौती देता है पर श्रीलंका के ठीक नीचे ‘ब्रिटिश इंडियन महासागर क्षेत्र’ में स्थित अमेरिका और ब्रिटेन के संयुक्त स्वामित्व वाले प्रवालद्वीप डियागो गार्सिया पर मौजूद अमेरिका की सामरिक उपस्थिति एक उचित संतुलन देता है. एशिया में पुतिन के रूस की बढ़ती सक्रियता और शी जिनपिंग के चीन से उसकी बढ़ती नज़दीकी के सम्मिलित प्रभाव के संतुलन के लिए अमेरिका ने भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर प्रभावी चतुष्क बनाया है जिसकी पुष्टि मालाबार अभ्यास में हुई भी. एशिया के बदलते परिवेश में जबकि भारत का पारंपरिक मित्र रूस भारत के पारंपरिक विरोधी पड़ोसी पाकिस्तान को शस्त्र आपूर्ति करने लगा हो फिर भारत का अमेरिका के प्रति झुकाव की निरंतरता स्वाभाविक है. बिम्सटेक, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से भारत के बेहतर सम्बन्ध अंडमान निकोबार कमान का सुरक्षा बंदोबस्त उसे बंगाल की खाड़ी में तो अपेक्षाकृत सुरक्षित बनाते हैं परन्तु यह ज़रुरी है कि अरब सागर में चीन की स्थिति को नियंत्रित किया जाय. ऐसे में भारत की चाबहार बंदरगाह से जुड़ीं चाहतें जायज़ हैं. चाबहार बंदरगाह, ग्वादार बंदरगाह से महज ७२ किमी की दूरी पर है किन्तु ग्वादार से बेहतर सामरिक भू-राजनीतिक स्थिति पर समायोजित है.
भारत की मध्य एशिया से भौतिक रूप से सक्रिय जुड़ाव की इच्छा को बल तब मिला जब क्षेत्र के दो प्रमुख देश तुर्कमेनिस्तान और कजाखस्तान ने हाल ही में एक रेलवे मार्ग का उद्घाटन किया जो उन्हें ईरान से जोड़ता है. ईरान के चाबहार बंदरगाह से होते हुए और मध्य एशिया के इस नए रेलवे मार्ग का प्रयोग करते हुए भारत निश्चित ही मध्य एशिया से भौतिक रूप से अपेक्षित सक्रियता के साथ जुड़ सकता है. मोदी जी की मध्य एशिया की यात्रा ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति भी दर्ज की है. इसप्रकार समझा जा सकता है कि चाबहार बंदरगाह का विकास भारत के सामरिक उद्देश्यों के लिए कितना अहम है. जहाँ ग्वादार बंदरगाह लगभग विकसित किया जा चुका है और इसपर व्यापारिक आवाजाही है, भारत ने आशा व्यक्त की है कि चाबहार बंदरगाह २०१८ तक पूर्णतः प्रक्रिया में आ जायेगा. चाबहार बंदरगाह के विकसित होते ही भारत के मध्य एशिया संपर्क का अवरोध तो स्थगित होगा ही, चीन की हिन्द महासागर में भारत को घेरने की नीति और एकतरफ़ा ‘एक मेखला एक मार्ग ’ को थोपने के प्रयासों को भी झटका लगेगा. भारत के प्रयासों से ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और भारत के मध्य व्यापारिक-सांस्कृतिक संबंधों की नयी शृंखला शुरू होगी जिससे क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन का दबदबा थमेगा. इसमें यदि मध्य एशिया के देशों को भी जोड़ लें तो फिर यह प्रस्तावना और भी लुभावनी हो जाती है.

किन्तु दोनों ही बंदरगाह अपने अपने सरपरस्त देशों के लिहाज से केवल सुखद संभावनाएं ही प्रस्तुत करते हों, ऐसा भी नहीं है. ग्वादार बंदरगाह से निर्गत व्यापारिक मार्ग एक अशांत क्षेत्र से शुरू होकर अशांत मार्ग से होते हुए एक अशांत क्षेत्र में ही प्रवेश करता है. ग्वादार बंदरगाह मकरान तट पर स्थित है जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त का हिस्सा है और यह एक आतंकवाद से ग्रस्त इलाक़ा है. चीन की योजना मुताबिक ग्वादार बंदरगाह से निर्गत व्यापारिक मार्ग चीन के काशगर तक जाता है. यह इलाक़ा भी आतंकी गतिविधियों से संत्रस्त है. ऐसे में व्यापार लाभ और संपर्क-संचार की मंशा इतनी आसानी से पुरी होने वाली नहीं है. इसीप्रकार अमेरिका और ईरान के अनिश्चित शीत-उष्ण पारंपरिक सम्बन्ध ईरान के चाबहार बंदरगाह की उपयोगिता को भी प्रश्नगत कर देते हैं. ईरान-अमेरिका के संबंधों में जब तब आता तापान्तर गाहे-बगाहे चाबहार बंदरगाह को विकसित करने की भारतीय सक्रियता में उतार-चढ़ाव लाता है, जिससे एक अनिश्चितता उभरती है. परन्तु इसमें कोई शक नहीं कि भूमि एवं जल दोनों ही पर सीधे अवस्थित चाबहार बंदरगाह, ग्वादार बंदरगाह के मुकाबले ना केवल अधिक सुरक्षित भी है बल्कि चाबहार बंदरगाह अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य के सुप्रसिद्ध मियामी की तरह उसी अक्षांश पर स्थित होने के कारण आदर्श पर्यावरणीय एवं व्यापारिक परिवेश निर्मित करता है, जो भारत के लिए शुभ है.

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